उन्नाव: बाबूलाल यादव इंटर कॉलेज में विज्ञान प्रदर्शनी और सांस्कृतिक गौरव का संगम
उन्नाव (उत्तर प्रदेश):- उन्नाव के सदर कोतवाली क्षेत्र में स्थित मोहल्ला जुराखनखेड़ा बाबूलाल यादव इंटर कॉलेज में हाल ही में आयोजित विज्ञान प्रदर्शनी ने शैक्षिक और सांस्कृतिक पहलुओं का अद्भुत प्रदर्शन किया। इस आयोजन में छात्रों ने अपनी रचनात्मकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को दिखाने के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का भी बखूबी परिचय दिया।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सांस्कृतिक झलक
इस प्रदर्शनी का मुख्य आकर्षण वैष्णो देवी की गुफा और महाकालेश्वर मंदिर की झांकी रही। छात्रों ने इन पवित्र स्थलों का ऐसा जीवंत मॉडल प्रस्तुत किया, जिसने उपस्थित दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वैष्णो देवी की गुफा के प्रतीक स्वरूप, छात्रों ने गुफा के निर्माण में वैज्ञानिक और पारंपरिक तरीकों का उपयोग किया। वहीं, महाकालेश्वर मंदिर की झांकी में शैव परंपरा के तत्वों को सुंदरता से प्रदर्शित किया गया।
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यह झांकी न केवल छात्रों की रचनात्मकता को प्रदर्शित करती है, बल्कि यह सनातनी मूल्यों और धार्मिक आस्था का संदेश भी देती है। छात्रों ने इस झांकी के माध्यम से भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रति अपनी गहरी निष्ठा को भी व्यक्त किया।
शैक्षणिक उपलब्धि और दर्शकों का उत्साह
बाबूलाल यादव इंटर कॉलेज में करीब 2,000 छात्र शिक्षा ग्रहण करते हैं, और यह आयोजन उनके ज्ञान, कल्पनाशक्ति और प्रतिभा का प्रतीक बन गया। प्रदर्शनी के दौरान छात्रों ने विभिन्न वैज्ञानिक मॉडल भी प्रस्तुत किए, जिनमें पर्यावरण संरक्षण, जल प्रबंधन, और सौर ऊर्जा जैसे विषयों पर आधारित मॉडल शामिल थे।
स्थानीय निवासियों, अभिभावकों और विद्यार्थियों की भारी भीड़ इस कार्यक्रम में उमड़ी। प्रदर्शनी में भाग लेने वाले दर्शकों ने छात्रों के प्रयासों की जमकर प्रशंसा की। कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने इसे न केवल एक शैक्षिक पहल बताया, बल्कि भारतीय सनातनी परंपरा और आधुनिक विज्ञान के बीच संतुलन का उदाहरण भी माना।
सनातनी मूल्यों का संदेश
यह आयोजन एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ अपनी जड़ों और संस्कृति को सहेजना भी उतना ही आवश्यक है। वैष्णो देवी और महाकालेश्वर मंदिर की झांकी ने सनातनी मूल्यों को पुनर्जीवित करने और उन्हें नई पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य किया।
बाबूलाल यादव इंटर कॉलेज की यह विज्ञान प्रदर्शनी केवल एक शैक्षिक आयोजन नहीं थी, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और शिक्षा के बीच समन्वय का प्रतीक थी। ऐसे कार्यक्रम छात्रों को उनके शैक्षणिक और नैतिक विकास में मदद करते हैं और समाज को एकता और आध्यात्मिकता का संदेश देते हैं।